ऋणी आजीवन रहूंगा भारतवासी तुम्हारा बंधन तुम मैं दुर्भाग्य विथि का विधान आओगे न दुबारा जीवन संवारा तुमने जीवन सुखी हो मेरा यही लक्ष्य बस तुम्हारा उलझे रहे सदा हम चल दिए तुम संस्कारों का है सहारा हे मातृभूमि मैं तुम्हारा भार कैसे चुका पाऊँगा| तुम्हारा सानिध्य ….

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